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देवउठनी एकादशी स्पेशल- तुलसी, सालिग्राम विवाह से मांगलिक कार्यों की होगी शुरुआत

आदित्य शर्मा (स्टेट बयूरो- अजय क्रांति) 
मोबाइल- 9479931913
उज्जैन। देवउठनी एकादशी की पूजा घर-घर में होगी। इस दिन भगवान की पूजा-अर्चना कर उन्हें जगाया जाता है, जिसके बाद से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। भगवान विष्णु का चतुर्मास शयनकाल 23 नवम्बर एकादशी के दिन समाप्त हो जाएगा।
शादी-ब्याह आदि सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। 
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को एकादशी मनाने का विधान है। देवउठनी एकादशी को देवउठनी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का बड़ा ही महत्व है। देवउठनी एकादशी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार देवउठनी एकादशी तिथि का प्रारंभ 22 नवंबर की रात 11 बजकर 3 मिनट से शुरू होगा जो 23 नवंबर की रात 9 बजकर एक मिनट तक रहेगा। इस दिन व्रत रखा जाता है और तुलसी व सालिगराम का विवाह होता है। एकदशी की पूजा मुहूर्त सुबह 6 बजकर 50 मिनट से 8 बजकर 9 मिनट तक है और रात्रि का शुभ मुहूर्त 5 बजकर 25 मिनट से रात 8 बजकर 46 मिनट तक है।देवउठनी एकादशी व्रत पारण समय 24 नवंबर की सुबह 6 बजे से 8 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
देवउठनी एकादशी के बाद क्या-क्या कर सकते है
देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से रूके हुए मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। चार महीने देवों के सोए रहने से किसी भी तरह के मांगलिक काम नहीं होते, देव उठनी एकादशी से मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश जैसे सभी काम शुरू हो जाते हैं। यह दिन हेमंत ऋतु के आगमन का संदेश देता है। चातुर्मास खत्म होने के कारण दूध, मूली, बैंगन और मैथी जैसी सब्जियों का सेवन भी इसके बाद किया जा सकता है।
देव उठनी एकादशी के दिन अबूझ मुहूर्त रहेगा
कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देवउठनी एकादशी मांगलिक कार्यो का सीजन शुरू होगा। इस दिन स्वयंसिद्ध अबूझ मुहूर्त होने से करीब 147 दिन के लंबे अंतराल के बाद फिर से शादी-ब्याह आदि मांगलिक कार्य शुरू होंगे।इस बार 23 नवंबर से 15 दिसम्बर के बीच 10 दिन विवाह मुहूर्त है। इसके बाद मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी पर 16 दिसम्बर को धनु मलमास शुरू हो जाएगा, जो पौष शुक्ल तृतीया पर 14 जनवरी तक रहेगा। इसके बाद फिर से शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य शुरू होंगे।
तुलसी विवाह
देव उठनी एकादशी के दिन 23 नवम्बर से तुलसी विवाह का प्रारंभ होगा और पूर्णिमा तिथि तक चलेगा। मंदिरों में तुलसी विवाह के आयोजन किए जाएंगे। जिन पति-पत्नी को कन्या नहीं होती है, वे भी तुलसी विवाह करके कन्यादान का लाभ उठाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और मां तुलसी से विवाह होता है।भगवान विष्णु के प्रत्येक भोग में तुलसी का पत्ता जरूर रखा जाता है। यहां तुलसी विवाह के आयोजन का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देना है, इसलिए तुलसी विवाह के माध्यम से लोगों को संदेश दिया जाता है कि सभी पेड़-पौधे भगवान का ही स्वरूप है, जो हमें जीवन के लिए आक्सीजन देते हैं। ऐसे में इनका संरक्षण किया जाना जरूरी है।

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